खोयी हुई आत्मा

खोयी हुई आत्मा
टटोल रही है मर्म
खाली पड़ी हुई
कविता के
जिस्म में जाने हेतु
जहाँ पर
श्रृंगार, वीर ,करुणा
तमाम रस आतुर हो
यमक,श्लेष,अलंकार
से मिलने के लिए।
इन सबसे तैयार
कविता निकली हो,
किसी हिम,समुद्र
की गहराइयों में
गोते लगाने हेतु
किसी प्रेमिका की
नथनी बन तो
किसी की बिंदी,
कविता इतराती,
बलखाती,शर्माती
लेखनी से निकल
उतरती हुई
कागज़ पे आती है
अपने अस्तित्व को
पहचानने


तारीख: 08.02.2024                                    आकिब जावेद




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