किसी के इंकार को इकरार में,
होने से तब्दील कर जाती ख़ामोशी।
किसी के चंचल मन को चांदनी में,
पलभर में सरोबार कर जाती ख़ामोशी।
किसी की पीड़ा को ह्रदय में ,
चुपके से सहन कर जाती ख़ामोशी।
किसी को कर सर्व अर्पण चरणों में,
क्षणभर मुस्कुरा जाती ख़ामोशी।
किसी के क्या अपने ही सपनों में,
बस रो-रोकर रह जाती ख़ामोशी।
किसी के क्या अपने ही अतीत में,
छुटछुट रह जाती ख़ामोशी।
किसी के लिए लूट जाने पर भी भूल में,
अपना अहसास नहीं जताती ख़ामोशी।
कुछ न कहकर भी बहुत कुछ धीमें से,
कह जाती ख़ामोशी।