कोशिश

राहते कुछ और कहती है
चाहते कुछ और कहती है
ढल चुके है दिन पर
ये शामें कुछ और कहती है
रोकने को कदम है नसीबो की कहानी पर
धड़कने दिलो की कुछ और कहती है
सख़्त है पिंजरो की शलाखे पर
चाहते परो की कुछ और कहती है
लड़ रहे है तोड़ने को शलाखे पर
वक़्त ए नज़ाख़त कुछ और कहती है
बंदिशो में नही, कल्पना आज़ाद है पर
कवायदों से ज़िन्दगी के, है थोड़ी नासाज़ पर
ख़्वाहिशें कुछ, तो लकीरे कुछ और कहती है


तारीख: 02.03.2024                                    आलोक कुमार









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