क्यों पूछते हो

क्यों पूछते हो परिचय मेरा
गर ज्ञात हो जाए तुम्हें
तो क्या करोगे
मेरे ख्वाब में क्या तुम
अपने रंग सजा पाओगे
या फिर मेरी निराशाओं में
अपनी आशाओं के दीप
जला पाओगे
क्या करोगे ज्ञात कर मुझे
मैं इक ओस की बूँद
गर पत्ते पर फिसलने से
रोक लो इसे तो
परिचय पा जाओगे मेरा
बोलो क्या कर पाओगे
मैं इक हवा का झोंका
बहने से जिसे रोक लो तो
परिचय पा जाओगे मेरा
बोलो क्या कर पाओगे
बहती नदी की धारा हूँ मैं
जिसे संभव नहीं है रोकना
बोलो क्या कर पाओगे
फूल हूँ मैं इक बगिया की
क्या तुम इसकी सुगंध को
फैलने से रोक पाओगे
बोलो क्या कर पाओगे
फिर क्यूँ पूछते हो
परिचय मेरा
मैं सब में व्याप्त हूँ
प्रकृति की ही इक
छाया मात्र हूँ।


तारीख: 20.02.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली









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