मां

गम के अंधेरों में
मिटती शाम
है मां
दिये की हर
लौ का प्रकाश भी
है मां।

बच्चे की होंठो
की मुस्कान है मां
जीवन के हर
पहलू की
जान है मां।

मां, ममता की
मूरत नहीं
स्त्रोत है
हर हृदय जिससे
ओत - प्रोत है।

मां, कोई कविता नहीं
कोई कहानी नहीं
मां है
ममता का
बहता हुआ पानी।

(मां के चरणों में प्रणाम)


तारीख: 03.03.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली









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