मैं करता ही क्या हूं।
फिर तू मुझसे पूछे
क्यों मैं नौकरी करता हूं
प्रतिदिन पिसकर भी
हर रात मैं जगता हूं।
क्या लालच रुपए का
या शौक मैं पूरे करता हूं
केवल दो रोटी से ही
क्यों पेट मैं भरता हूं।
न दिखे गड्ढे नयनों के मेरे
मैं चश्मा मोटा पहनता हूं
सपने पूरे करने को तेरे
मैं रात–रात भर जगता हूं।
फिर तू मुझसे पूछे
मैं कब पिता–सा लगा हूं
तेरे लिए आखिर
मैं करता ही क्या हूं!
मैं करता ही क्या हूं!