सुनो स्त्रियों

सुनो स्त्रियों,
व्रतों-त्योहारों की प्राचीन काल से
चली आ रही कथाओं को
सुनकर,पढ़कर, व्रत तोड़ने से पहले ,
करो उनमें कुछ ज़रूरी बदलाव !
जहां लिखा हो 'पुत्रवती' भव,
वहां लिखो 'संतानवति' भव!
जहां लिखा हो,
ये व्रत सभी 'पत्नियों' को करना चाहिए,
वहां लिखो सभी 'दंपतियों' को करना चाहिए !
लेकिन हाँ, ये ज़रूरी बदलाव यदि अपने स्तर पर तुम्हें सही लगें तभी करना, वरना हरगिज़ न करना !
क्योंकि आखिर यह आने वाली पीढियों को पुरानी खोखली मान्यताओं से आज़ाद करने का प्रश्न है!
और सच पूछो तो व्रतों की जो कथाएं परीलोक से अधिक वास्तविक लोक की सी लगती हों तभी अधिक आस्था पैदा कर पाती हैं ! वरना तो सदियों से ढकोसला बन लकीर की फकीर बन बेमतलब घसीटी जाती हैं!
क्योंकि मैंने देखा है तीज-त्योहारों पर कही जाने वाली कई पुरानी लोक कथाओं को निर्रथक होते हुए भी चुपचाप श्रृद्धापूर्वक  हाथ जोड़कर सुनते ,मन ही मन रोती उन
स्त्रियों को-
जो माँ हैं बेटियों की,
जो पालती हैं पतियों को!


तारीख: 07.03.2024                                    सुजाता









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