मुझको हिंदुस्तान दिखता है

ना दिल्ली कभी ,ना राजस्थान दिखता है,,
मैं अंधा हूँ मुझको पूरा हिन्दुतान दिखता है।
तेरी नजरों की कारीगरी ये हिंदू वो मुसलमान,
मैं अनाड़ी ही सही सब में इंसान दिखता है।

इस नफरतों की दौड़ ने काफिर बना दिया,
वगरना तो पत्थरों में भगवान दिखता है।
भूख की खतिर ही गिरवी रखा जमीर को,
उसकी मजबूरी में भी ईमान दिखता है।

सजा तो मैं भी देता उस क़ातिल को यकीनन,
मुश्किल कि उसमें खुद का शैतान दिखता है।
जन्नत की सारी दौलतें ये शोहरतें किस काम की,
"अमिताभ" खुद से हीं पूरा अनजान दिखता है।


तारीख: 12.02.2024                                    अजय अमिताभ सुमन









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