आख़िर कैसे नए वादों पर ए'तिबार किया जाए
पुरानी साज़िशों को कैसे दरकिनार किया जाए।
क़ातिल क़त्ल की ताक़ में ज़मानों से सोया नहीं
आख़िर सोए हुओं को कैसे होश्यार किया जाए।
सच दिन-ब-दिन और कमज़ोर बनता जा रहा है
चलो साथ मिलकर झूठ का शिकार किया जाए।
देखों कितनी ऊँची हो गई है दीवारें नफरतों की
चलो ज़हन की ताक़त से इनमें दरार किया जाए।
खुद्दारी की स्याही भर लो अपनी कलम में तुम
चलो अपने सब लफ़्ज़ों को हथियार किया जाए।
जवाँ पीढ़ी ही तो इस मुल्क़ को आगे ले जाएँगी
आओ अच्छी तालीम से इन्हें तैयार किया जाए।
-जॉनी अहमद 'क़ैस'
*ख़ुशी भी ढूँढू तो बस दर्द का सामान मिले*
ख़ुशी भी ढूँढू तो बस दर्द का सामान मिले
मुझे जो लोग मिले मुझसे परेशान मिले।
मैं अपने शहर का मुआइना जब करने लगा
मुझे तो हर जगह सोते हुए दरबान मिले।
कहीं भी कूच करू मिलती हैं ज़िन्दा लाशें
कभी कभी ही तो ज़िन्दा हमें इंसान मिले।
जिन खिलौनों के संग बचपन अपना बीता
आज देखा उन्हें तो सारे वो बे-जान मिले।
वो जिनकी आदत थी तंज़ करना औरों पे
दाग-धब्बों से भरे उनके गिरेबान मिले।
जब अपनी ज़िन्दग़ी की लाश को देखा मैंने
उसकी गर्दन पे मेरे हाथों के निशान मिले।