नयी सुबह

स्तब्ध रात्रि घुलती जाती ,नयी सुबह को बुनती जाती।
मिट जाये अँधेरा सूर्योदय पर ,प्रारम्भ नए जीवन दिन का।

मधुबन की भीनी खुशबु से ,भवरों की मीठी गुंजन से।
मस्तिष्क कमल खिल उठता है ,मन मोर मुकुट नर्तन करता।

प्रत्येक दिवस है नया समर ,नयी नयी होंगी बाधायें।
भयाक्रांत न हो इन बाधाओं से ,यही तो होगा स्त्रोत लक्ष्य का।

विश्वास हवा सा भर ले अपने ,मन के तू गुब्बारे में।
निश्चिन्त प्रवृति बालक भांति ,निकल जा अपनी कर्मभूमि को।

आक्रामक हो इन बाधाओं पे ,उत्साहित योद्धा के जैसा।
बाधाओं का व्यूह भेद दे ,छोड़ दे पीछे अभिमन्यु को।

कर पान निराशा के विष को ,दृढ हो जा तू अब नीलकंठ सा।
मंथन कर विश्वास ,कर्म का , उत्पादित कर सफलता का अमृत।

नतमस्तक होकर कठिन लक्ष्य भी ,राह में तेरी आ जाएगा।
अभिमान न कर तू लक्ष्य प्राप्ति का ,नया लक्ष्य फिर प्रस्तुत होगा।

नयी सुबह फिर से आएगी,नयी कर्मभूमि लाएगी।
चलता चल तू जीवन पथ पर ,मस्त मगन यूं ही बस मद में।

रात्रि यूं ही घुलती जाएगी, नयी सुबह आती जाएगी अविरल तेरे जीवन में।


तारीख: 30.06.2017                                    आलोक









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