आवाज़ दो कहाँ हो



यह स्याह रात यह खामोशी
धड़कनों की टूटती गर्मजोशी
ये वजूद में, जो तुम न यहाँ हो
हो रहम बुला लो तुम जहाँ हो
कहाँ हो आवाज़ दो कहाँ हो
सन्नाटे की इक़ लम्बी कतार सी
सुकूँ चैन की खिंची दीवार सी
बता दूं तुम्हीं दर्द तुम्ही दवां हो
बदल दे दिले सूरत वो हवा हो
कहाँ हो आवाज़ दो कहाँ हो
वक्त के आईने में तेरी तस्वीर
यादों के झरोखें में तेरी ताबीर
इश्क़ तबियत में तुम जवां हो
आ भी जाओं, तो जाँ रवाँ हो
कहाँ हो आवाज़ दो कहाँ हो
बिन तुम्हारे जिंदगी अंगार सी
मुँह चुराती है अब मेरी ही हँसी
बेघर खुशियों की तुम पनाह हो
हाँ मेरी मोहब्बत की तुम ख़ुदा हो
कहाँ हो आवाज़ दो कहाँ हो......
कहाँ हो आवाज़ दो कहाँ हो...


तारीख: 01.11.2019                                    नीरज सक्सेना









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है