नृत्य करती हुई स्त्रियां

नृत्य करती हुई स्त्रियां,
हो जाती हैं पृथ्वी
जो संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ-साथ
चारों दिशाओं , छ: रितुओं
जलप्रपातों और चक्रवातों को
हस्त मुद्राओं में समेटे
महावर लगे पैरों से ,
अपनी ही धूरी पर चिरमग्न
होकर चक्करघिन्नी की तरह
घूमती हैं !

नृत्य करती हुई स्त्रियों के नयनों से
छलकते हैं नवरस , जो उनकी पुतलियों की
चमक को श्रृंखलाबद्ध तरीके से
तीव्र-मद्धम कर ऐसा सम्मोहन पैदा करते हैं,
जो देखने वाले को आकंठ डुबोकर
झूमने पर विवश कर देते हैं !

नृत्य करती हुई स्त्रियों के
घुंघरु बंधे पैर जब लयबद्ध होकर
वाद्ययंत्रों की ताल और सुर पर बारंबार
ऊंचे उठ-उठ कर जमीन पर वापिस लौटते हैं ,
तब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का नियम भी अचंभित हो
अपने अस्तित्व को लेकर आशंकित हो उठता है !

नृत्य करती हुई स्त्री नृत्य के सबसे सूक्ष्म
गहनतम क्षण में झूमते हुए कर्णफूलों,
कलाईयों में बजती चूड़ियों और
गजरे से झड़े चमेली के फूल में 
सहसा ही ढूंँढ लेती है अपना खोया वजूद
जो रिश्तों की खड़ी ताल पर
एक पैर से नाचते कहीं खो सा गया था !

नृत्य करती हुई स्त्री को देखकर
कहीं न कहीं यह विश्वास और पुख्ता
हो उठता है कि हो न हो
सृष्टि की रचना अवश्य
किसी स्त्री ने ही नृत्य के दौरान
चुटकियों में कर डाली होगी !


तारीख: 14.02.2024                                    सुजाता









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