रात की सुरमई मे,
तारो की रेश्मी छाँव खिली है,
एक दिव्य उपवन की मानो,
मधुर जगमगाती पवन चली है,
कही दूर उस मर्म-लोक मे,
टिमटिमाते हूये स्वप्न-लोक मे,
ऐसा प्रभास नजारा देखा,
एक टूटता तारा देखा ||
प्रकृति पर जलते दीये हो शोभित,
हो नभ-शृंगार नगों से भूषित,
रेशमी किरणों के महा-चरम मे,
गगन पर छाये उस आलोक परम मे,
जी-भर के आज उजियारा देखा,
एक टूटता तारा देखा ||
चाँद-तारे आते सज-धज के,
मन|ये अंबर मे पर्व,
रोशनियो की अतखेली करे,
बिखेरे सृजन पर अपना सर्व,
उस जलसे से, जिवो के लिये, एक भेंट का झारा देखा,
एक टूटता तारा देखा ||
टूट-कर अपनों से,
विरह की टीस भरे मन से,
करने चला यात्रा सौरमंडल की,
आकाश की, कभी धरातल की,
अकेला है, पर लिये
विश्वास,
हर क्षण गंतव्य की ओर प्रयास,
आज बनते एक नया सितारा देखा
एक टूटता तारा देखा ||
ज्योति के जैसा वो लगता,
बिखेरता देव-आशीष का उपहार,
चलता जुगनू के जैसा वो,
केवल भोर तक की बार,
आसमां को आज कायरा देखा,
एक टूटता तारा देखा ||
ब्रह्माण्ड का सौभाग् बने वो,
संसार की सुखद आस बने वो,
स्त्रोत को प्रबल करे वो,
शुभम का वाहक बने वो,
जैसे ईश का कोई प्यारा देखा,
एक टूटता तारा देखा ||