पत्थर पे फूल

पत्थर पे फूल खिला सकते हो क्या
सोई हुई ज़मीर जगा सकते हो क्या ।
बड़ा गरूर है अपने तरक़्क़ी पर तुम्हें
  मरे हुए को भी जिला सकते हो क्या ।
बड़े आए हो यहाँ तुम मसीहा बनकर
पत्थरों को भी पिघला सकते हो क्या ।
किस वहम-ओ-गुमान में जी रहें हो
वक़्त को बेवकूफ बना सकते हो क्या।
अज़ीब अहमक हो यार,अजय तुम भी
गजलों से गरीबी मिटा सकते हो क्या।


तारीख: 15.04.2024                                    अजय प्रसाद






रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है