माँ की नाभि से अंकुरित होता है प्रेम का बीज..
पिता के द्वारा सींचा जाता है....
भाई बहनों के साथ झूमता है डालियों पर..
आँगन,घर,गलियाँ,द्वार सब
प्रेम के रंग में रंग जाते हैं
फिर मिलते हो तुम,चूमती हूँ तुम्हारा अंग-अंग
फिर तुम्हारे रोम-रोम में रम जाती हूँ मैं
फिर ये प्रेम लताएं फहराने लगती हैं तुम्हारे दिल के आँगन में
और पहुंच जाती हैं तुम्हारी आत्मा के शिखर तक
जहाँ प्रेम है वहाँ बस प्रेम है
न किसीसे ईर्ष्या , न द्वेष , न और कोई लालसा
बस प्रेम
प्रेम
प्रेम !