ठंडी आग हूँ मैं,
जो सिर्फ रौशनी फैलाती है , जलती नहीं ।
ठंडी आग, रात की तारों की तरह ....
जब तुम मुझे बहुत दूर से देखोगे।
पर मेरे अंदर की दहक को ,
बिना स्पर्श के छू नहीं सकते ।
और क्या करोगे छूकर ?
ये आज मुझे जलाती है,
कल तुम्हें भी जलाएगी ।
मर्ज़ी तुम्हारी,
सोना हो तो तपना चाहोगे,
राख हो तो चुप रहना ।
क्योंकि राख को तो
आग भी नहीं जला सकती ।