सफ़र-ए-जिंदगी आसान हो जाए,
गर संबंधो में अपनापन हो।
बिन अपनेपन संबंध जैसे
बिन श्वास के प्राण।
खुशनसीब है मनुज,
जिंदगी की दहलीज़ पर,
ढेरों रिश्तों से रूबरू हो जाता है।
फिर इन रिश्तों को आत्मीयता से
जोड़े रख वो
"संबंध बनाता है।
जिंदगी की कटीली डगर
भी सहजता से पार हो जाए,
गर संबंधो में अपनापन हो।
गर संबंधो में अपनापन हो,
पशु भी अपना बन जाता है।
एक दूजे की भावना को समझ,
भांति-भांति नेह दिखाता है।
प्रेम अनुबंध से बंधा हो मन
तो संबंधो में अपनापन हो।
धन के पीछे भागे ये जन,
मुंह पर मेरा गुणगान करें।
पीठ पीछे ना जाने कितने छूरे चलाएं।
किसको ये पता चले?
जहां मुख पे मुखौटा ना हो,
विश्वास का डगमग साया न हो।
तो संबंधो में अपनापन हो।
संबंध होते वृक्ष की भांति,
जिसे अहंकार रहित हो सींचा जाता।
ईर्ष्या-द्वेष, स्वार्थ रूपी खरपतवार
संबंधो को न पोषित होने दे।
जहां ईर्ष्या द्वेष लेशमात्र न हो, स्वार्थ मुक्त बंधन हो।
तर्क वितर्क का प्रतिवाद नहीं हो,
बनावटी न नभ न ही धरा हो।
तो संबंधो में अपनापन हो।