शाम की सैर
के बीच पड़ते
तालाब को देखती हूँ,
जिनके किनारे दो प्रेमी बैठे दिखते हैं
जिन्हें भविष्य में बिछड़ना है ,
लेकिन जो सपने देखते हैं नदी और सागर से।
मुझे उस तालाब की गहराई में
उसके छोटे से दायरे में
उन दोनों प्रेम से भरे प्रेमियों को
मिलने वाले दर्द से मिलता जुलता एक दर्द थमा दिखता है।
लड़की पाँव डूबा के तालाब में कहती है लड़के से
"ये तालाब हमे पहचानने लगा है न!"
"हां, ये साक्षी है हमारे प्रेम का "
तलाब की बेहद छोटी अदृश्य सी लहरों में एक उदास धड़कन चलती है।
जेठ का महीना आगे है,
तालाब ने सूख जाना है।