जिंदगी की संदूक में
वह अक्सर डाल देती थी
कुछ मुड़े तुड़े पन्ने शिकवो के
कुछ खाली लिफाफे अपनी इच्छाओं के
कुछ पत्र बिखरते एहसासों के
कुछ सिक्के अपनी खुशी के
कुछ टुकड़े अपनी भावनाओं के
कुछ चिथड़े दूसरों से मिली संवेदनाओं के
इकट्ठा कर रखा था उसने बहुत कुछ
अपने लिए संदूक में
और अक्सर बैठ जाती थी
वह उन्हें खोलकर सहेजने
जो बेहद कीमती थे उसके लिए
किसी भी प्रिय वस्तु की तुलना में