हरि अनंत हरि कथा अनंता।
अगर हम रामायण को एक शब्द में व्यक्त करें तो सीताराम।
यदि तीन शब्द की रामायण लिखें तो दशरथ राम दशानन।
यही तो जीवन है।
क्या हम इन्हें केवल रामायण के तीन पात्र ही मानते हैं। क्या रामायण कुछ सदियों पहले हुई एक घटना मात्र है या यह रामायण और रामायण के सभी प्रसंग हमारे जीवन में बार बार होते हैं। यदि इन तीनों पात्रों को हम अपने जीवन में लेकर देखें तो हमें आभास होगा कि यही हम सबका जीवन है।
दशरथ का अर्थ क्या है। ये नौरथ या ग्यारहरथ क्यों नहीं है।
दश का अर्थ केवल गिनती का दश नहीं है। दश का अर्थ है अनगिनत, जिसे हम गिन नहीं सकते। यदि हम बाईनरी डिजिट की बात करें तो एक और शून्य में सारी गिनती आ जाती है। अर्थात् दश का कोई अन्तिम छोर नहीं है। रथ का अर्थ है हमारे गुण और हमारा पराक्रम। रथ हमारी प्रगति साहस और विजय का प्रतीक है। रथ हमारे कर्म को दर्शाता है जिससे हम अपने ध्येय की ओर अग्रसर होते हैं। रथ का एक अर्थ हमारा शरीर भी है। महाराजा दशरथ ऐसे महान आत्मा हैं जिन्होने अपनी सभी दश इन्द्रियों को वश में कर रखा है। अपनी सभी इन्द्रियों को वश में करने पर ही हमें भगवान् प्राप्त होते हैं।
दशरथ का अर्थ है हमारे अनगिनत गुण और पराक्रम जिससे जनम होता है राम का। हमारे गुण हमारा विवेक और हमारा पराक्रम ही हमारे अन्दर राम को पैदा करते हैं। महाराज दशरथ सब सद्गुणों का भण्डार थे जिससे भगवान् राम की उत्पति हुई। आज के युग में यदि हम केवल एक इन्द्रिय को भी वश में कर ले तो हम स्वयं को जीत सकते हैं। राजा दशरथ का ऐश्वर्य स्वर्ग से भी अधिक था और उनका पराक्रम ऐसा कि प्रजा हित के लिए उन्होंने स्वयं शनिदेव को भी ललकारा और उनसे युद्घ किया।
ऐसे ही जब हमारे सद्गुणों का विकास होता है तो हमारे अन्दर भी राम का जन्म होता है। राम है हमारा सुकून हमारी हिम्मत हमारा आनंद परम आनंद चित्त का आनंद। यही राम है हमारा परम ज्ञान। हमारा सत या सत्य। यही है सच्चिदानंद।
राम के जन्म का उद्देश्य है दशानन का वध। ये दशानन कौन है। एक व्यक्ति जिसके कन्धे पर दश सिर टिके हुए हैं। क्या यही सत्य है। दशानन का अर्थ है अथाह ज्ञान। यानि रावण या दशानन के द्वारा दर्शाया जाता है कि वह व्यक्ति जो ज्ञान का अथाह भंडार है। रावण का ज्ञान इतना था कि दस या उससे अधिक ज्ञानी पण्डित यदि अलग-अलग विधा में पारंगत होकर भी आये तो भी रावण के जितना ज्ञान नहीं हो सकता है। रावण एक ऐसा पण्डित या ज्ञानी है जो हर विद्या में निपुण है। साम दाम दंड भेद ।सब रावण को ज्ञात है। परंतु साथ में ही उसके दश मुख से दर्शाया जाता है दश विकार। दश अवगुण जो रावण के गुणों पर भारी पड़ गए। रावण के अंत का कारण उसीके अवगुण बन गए। उसीके अहंकार और अत्याचार के कारण श्री राम ने उसका वध किया।
दशरथ पुत्र श्री राम ने रथ का
कितना सुन्दर वर्णन किया है। जब युध्द के समय श्री राम को रथ के बिना देखकर महाराज विभिषन कुछ विचलित हो गये, उन्होने श्री राम को कहा रावण के पास अभेद्य रथ है लेकीन आप बिना पादुका एवं रथ के ही युध्द कर रहे हैं तब श्री राम ने कहा -
सौरज धीरज तेही रथ चाका। सत्य शील दृढ़ ध्वजा पताका।।
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।
अर्थात् मैं जिस रथ पर सवार हूँ उस रथ के पहिये शौर्य और धीरज से बने हैं। सत्य एवम शालीनता इस रथ की दृढ़ ध्वजा और पताका हैं। बल विवेक हिम्मत और परोपकार इस रथ के चार घोड़े हैं। क्षमा कृपा समता इन घोड़ों को जोडने वाली रस्सियाँ हैं। इश्वर का भजन ही इस रथ को चलाने वाला सारथी है। वैराग्य ढाल और सन्तोष तलवार है। दान फरसा के समान एवं बुद्धि प्रचंड शक्ति है। श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है। शुद्ध और अचल मन ही तरकश के समान है। शम यम और नियम ही बाण हैं। ब्राह्मण और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है। जिसका रथ ऐसा धर्ममय हो, उसको कोई भी शत्रु पराजित नहीं कर सकता। ऐसे ही जब हमारे अन्दर अवगुण आ जाये तो हमें दशरथ बनकर हमारे अन्दर के राम को जन्म देना होगा जो इस रावण का वध कर सके। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम सब के अन्दर गुण और अवगुण दोनों हैं लेकीन हमारे राम को हमारे भीतर रहना होगा। हमारे गुणों को जगाना होगा। यही सार है हमारी सभ्यता का। हमारी रामायण का। यही तो हमारा धर्म है।
जय श्री राम ।