एकतरफा दोस्ती

जीवन की यह कड़वी सच्चाई है कि इंसान जो सोचता है, वो होता नहीं, खैर यह तो जीवन है.
कुछ ऐसा ही हुआ मीना के साथ, बचपन से ही अपनी सहेली नेहा के पीछे पागल थी... सारा दिन उसी के घर पडी रहती थी.. अपना गृहकार्य भी वही करती थी.. एक तरफ कहे तो मीना नेहा को अपना सब कुछ मानती थी, वही दूसरी तरफ नेहा का मीना की तरफ कोई खास सरोकार नहीं था.. शुरू शुरू में मीना यह बात जान नहीं पाई थी कि नेहा के लिए उसकी कोई अहमियत नहीं है, वो सिर्फ उसके मतलब के लिए उससे रखती है, क्योंकि मीना के पिताजी सरकारी विधालय में अध्यापक थे. नेहा अपनी सारी जरूरते मीना से कहकर पूरी करवा देती.... धीरे धीरे मीना परीक्षा में पिछड़ गई. 
और एक दिन वक्त ऐसा आया कि दोनों को अलग अलग विधालय में दाखिला लेना पडा़.. नेहा पढाई में बहुत अच्छी थी, तो उसने विज्ञान विषय चुना, परंतु मीना होशियार होने के बावजूद भी कला वर्ग को ही चुना... समय ने करवट तो ले ली, परंतु मीना उदास रहती थी... 
उसे नेहा से दूर रहना गवारा नहीं था, परंतु मजबूर थी.... समय के साथ  हालात भी बदल गए... नेहा की पढाई पूरी हो गई, और मीना की भी डिग्री पूरी हो चुकी थी.... नेहा की शादी तय हो गई,, परंतु नेहा तो मीना को भूल चुकी थी, उसने मीना को शादी में भी नहीं बुलाया... यह सब जब हुआ, तो मीना का दिल टूट सा गया.. जिसे अपना सबसे अच्छा दोस्त माना, उसने इतना भी मान नही दिया कि शादी में जा पाए.... 
खैर, समय के साथ अब मीना नौकरी की तैयारी करने लगी, कभी कभी उसे नेहा की याद तो आती थी, परंतु वो कहती नही थी, क्योंकि नेहा अब विदेश में जाकर बस गई थी... फिर भी ना जाने क्यों मीना को उसके आने की उम्मीद थी...पूरे सात साल बाद नेहा अपने गाँव आई, जब मीना को उसकी खबर हुई तो उससे रहा नही गया, वह दौड़ी चली गई, लेकिन नेहा ने उसे अनदेखी कर दिया... मीना मुंह लटका कर आ  ग ई. हालांकि मीना की सरकारी नौकरी लग चुकी थी, फिर भी हमेशा यही सोचती थी कि मेरी एक सहेली है, अचानक नेहा के पिताजी चल बसे, नेहा को रूपयों की सख्त जरूरत थी, उसने मीना से रूपये उधार ले लिए, मीना ने बिना सवाल किए पच्चास हजार दे दिए.. नेहा के पिताजी का सब काम निपटा कर वो पुनः विदेश चली गई.... ना कोई चिट्ठी ना ही कोई फोन.... मीना सोचती थी एक दिन तो नेहा मेरी दोस्ती की कद्र करेगी,. 
आज तेरह साल बाद मीना के फोन की घंटी बजी, देखा नेहा का मैसेज था, हालांकि उसे पता नहीं था कि वो नेहा का नंबर है, परंतु नेहा ने मैसेज में जानकारी दी कि मैं नेहा... मीना बहुत खुश हुई.... उसने मिलने का समय तय किया, सारे पुराने दोस्तों को आमंत्रित किया... तारीख और समय तय किया गया... लेकिन अचानक इसी बीच मीना का कार दुर्घटना में पैर टूट गया, मीना ने सोचा नेहा को खबर कर दू कि वो नहीं आ पाएगी, लेकिन नेहा ने सोचा वो बहाना कर रही है,. वो कहते है ना कि जहाँ दोस्ती नही होती वहाँ भरोसा भी नहीं होता, शायद यही मीना के साथ हुआ, नेहा ने उलटा सोचा और कहा कि मैं अपना इतना किमती समय निकाल कर तुमसे मिलने आई और तुम बहाना कर रही हो..... खैर. मीना कुछ भी नहीं कह पाई,,, अब वो समझ ग ई थी कि जहाँ मित्रता नही, वहाँ कुछ भी नहीं.... नेहा गाँव से पुनः विदेश चली गई... मीना ने बहुत सोचा कि नेहा उससे मिलने चली आएगी... वो नहीं जानती थी कि नेहा खुदगर्ज और स्वार्थी होगी.. 
जिंदगी में भी कही सारे दोस्त भी ऐसे ही स्वार्थी होते हैं, जिन्हें हमें वक्त रहते पहचान जाना चाहिए.... यह बात आज मीना को समझ आ गई थी... जिस सहेली के पीछे बचपन से पागल थी, आज उसके बारे में जान पाई... आज सब कुछ ठीक है मीना की जिंदगी में, न ए दोस्त, अच्छे है.. बस दुख है तो उसे इस बात का कि आखिर उसकी दोस्ती में क्या कमी थी.....?? 
आज इक्कीस साल बाद नेहा विदश में कोरोना की वजह से गांव फिर से आ रही है, परंतु अब मीना आगे बढ़ चुकी है, उसे किसी नेहा से कोई मतलब नहीं.... 
दोस्तों जहाँ तक हो सके किसी की दोस्ती का दू्रपयोग नहीं करना चाहिए..... यही बात मीना समझा गई..... 
स्वरचित एवं मौलिक


तारीख: 04.02.2024                                    रेखा पारंगी




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