मेरा जलता घर

वो मेरे घर के बाहर चिल्ला रहे थे कोलाहल मचा था,
मेरे कानों ने जो सुना वो कुछ इस प्रकार था वो कह रहे थे कि
'आग लगा दो जला कर राख कर दो हमारे बारे में कहता है हमारे बारे में लिखता है।ख़ाक कर देंगे इसे मशाल से एक ऐसी मिसाल बना देंगे इसकी की किसी की मजाल ना हो फिर ऐसी जुर्रत दिखाने की।'
फिर शायद उन्होंने जलती हुई मशालें मेरे घर पर फैंक दी होंगी।दो चार पत्थर से जो कांच टूटे थे उन्होंने जरूर मेरे पैरों में आ कर मेरे अंदर की इंसानियत और मोहब्बत को लहू के रूप में बहा दिया था।अब मैंने भी प्रयत्न करने छोड़ दिए थे मानो मैंने मौत को आत्मसमर्पण कर दिया हो।मेरा घर आग की लपटों में जल रहा था और अब शायद मेरे घर को आग के हवाले करके वे लोग भी जा चुके थे।अब बाहर सन्नाटा था मानो वातावरण ने मेरी मृत्यु से पहले ही मेरे लिए शोक प्रकट कर दिया हो या वो तैयारी कर रहा था मेरी मौत के मातम की।अब मेरे कानों तक बस आग की लपटों की ही आवाज पहुंच रही थी तभी अचानक से जो हुआ उसने मुझे आश्चर्य चकित कर दिया।यकीनन ही ईश्वर ने मुझे दूसरा जीवन देने की ठान ली थी या मानो अभी मेरे दिन शेष थे।वहां जोर से बारिश आने लगी और देखते ही देखते घर की आग विलुप्त हो गई।मुझ को यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा था कि मैं जीवित हूं। मैं चुप चाप मेरा जला हुआ घर मेरी यादें मेरा गांव मेरा यौवन सब छोड़ कर मैं शहर की तरफ रवाना हो गया।आज भी बहुत मन होता है वहां जाने का मगर ना जाने क्यों हिम्मत ही नहीं हो पाती वहां जाने की।मुझे मेरा घर जरूर बुलाता होगा मगर वो रात उसकी आवाज़ को मुझ तक पहुंचने नहीं देती।अब तो ये अनजान शहर ही मेरा गांव हो चला है।

 


तारीख: 12.04.2024                                    मोहित शर्मा भारद्वाज









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