दुनिया के बनाये रास्तों पर चलने से ज़्यादा अपनी ख़ुद की बनाई पगडंडी पर चलने में विश्वास करने वाली लेखिका ज्योति जैन, आजकल अपनी किताब “इबादत को इजाज़त है” के लिए सुर्खियाँ बटोर रही हैं | “कुछ शब्द इनके भी” श्रृंखला की अगली कड़ी में हमने बातचीत की ज्योति जी से | प्रस्तुत है इनसे बातचीत के कुछ अंश:
1.सबसे पहले साहित्य मंजरी से बात करने के लिए शुक्रिया.
आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया .
2. अपने बारे में हमारे पाठक गण को कुछ बताएं |
राजस्थान में बसी श्रीनाथजी की नगरी नाथद्वारा की रहने वाली हूं। परिवार में मम्मी-पापा के साथ दो बहने और एक भाई है। बचपन से ही लिखने-पढ़ने का शौक रहा है। और यहीं शौक अब कहानियां लिख कर पूरा कर रही हूं।
3. साहित्य प्रेम कब और कैसे प्रारंभ हुआ ? कब आपको लगा कि आप कहानियां लिखना चाहती हैं ?
जैसा कि मैनें बताया लिखने का शौक तो बचपन से ही था, लेकिन सिर्फ लिख कर ही खुशी मिलेगी ये पता नहीं थी। एक बार कॉलेज में इक्तेफाक से एक लेख लिखा था, वो एक नेशनल मैगज़ीन में छपा। उसके बाद तो फिर लिखने का एक सिलसिला सा हो गया। लेख, कविताओं से होते हुए कहानियां लिखने लग गयी।
4."इबादत को इजाज़त है" क्या है? यदि 2 पंक्तियों में इस किताब को परिभाषित करना हो तो कैसे करेंगी?
इस किताब में ख्वाब है, ऐसे मोड़ है जिससे हर शख्स कभी ना कभी जरुर रू-ब-रू होता है। इस किताब को पढ़कर आपको लगेगा कि जिन्दगी ऐसे भी ना जी तो फिर क्या जी…जब भी कोई यह पूछता है की अगली किताब कब आएगी तो एक उम्मीद बंधती है की कोई है जो आपको फिर से पढना चाहता है . इससे अनमोल क्या होगा भला .
5.अभी तक आपकी पुस्तक को कैसा रिस्पांस मिला है ?
उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छा… बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।
6. एक लेखिका की हैसियत से आपके लिए अभी तक का सबसे यादगार लम्हा क्या रहा है ?
बतौर लेखिका कहुं तो, किताब पढ़ने के बाद मुझे एक इंसान का मेल मिला था। किताब को जिस तरह उसने पढ़ा वैसे शायद ही किसी ने पढ़ा होगा। उसके शब्द अभी भी जैसे दिमाग में घुम रहे हो… सच!!! उस अनजान शख्स के वे शब्द हमेशा याद रहेंगे मुझे।.
7.आजकल के किन रचनाकारों को आप पढना पसंद करती हैं?
बहुत सारे है, जैसे बाबुषा कोहली, नूर ज़हीर, हरीदास व्यास आदि। .
8.आने वाले दिनों में क्या प्लान्स हैं ? क्या कुछ और लिख रहीं हैं ?
हां, कुछ चीजें है ज़हन में… जल्द ही बताऊँगी।.
9.ज्योति जैन जब लिख या पढ़ नहीं रही होतीं तो क्या कर रही होतीं हैं ?
तब, रिश्तों या एहसासों को महसूस कर रही होती हूं, उन्हें ऑब्सर्व कर रही होती हूं।
10. टेक्नोलॉजी का साहित्य और साहित्यकारों पर क्या प्रभाव पड़ा है ? क्या इसकी वजह से पढने एवं लिखने वालों की संख्या कम हुई है या आपको लगता है कि टेक्नोलॉजी साहित्य को और आगे ले जाने में एक बड़ी भूमिका निभाई है ?
बिलकुल, टेक्नोलॉजी ने साहित्य और साहित्यकारों को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ी और अहम भूमिका निभाई है। आज अगर आप और मैं बात कर पा रहे है तो वो भी तो टेक्नोलॉजी से ही सम्भव हो पाया है। टेक्नोलॉजी की वजह से ही आज हम जिसको चाहे गूगल करके तुरंत पढ़ सकते है। और जहां तक संख्या ज्यादा या कम होने की बात है तो मुझे लगता है कि जिसे सच में पढ़ना होता है वो कैसे भी वक्त निकाल ही लेता है।
11.जो लोग आपकी तरह ही लिखना चाहते हैं उनको क्या सन्देश देना चाहती हैं ?
अपने दिल कि सूनो, खूब पढ़ो और लिखो, ये तो बिलकुल भी मत सोचो कि आपका लिखा लोगों को पसन्द आयेगा या नहीं। क्योंकी हर इंसान को हर चीज पसन्द नहीं आ सकती। खुद का लिखा हुआ पढ़ो, जो कमी लगे उसे सुधारो, फिर से लिखो… सबसे बड़ी बात चीजों को ऑब्सर्व करना सीखो। लिखने और ऑब्सर्व करने का कोई विकल्प नहीं हो सकता।
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