
क्राइम, रहस्य और मृत्यु-बोध का तीखा आख्यान
सत्य व्यास हिन्दी पॉपुलर फिक्शन की दुनिया में अपने हास्यप्रधान और हल्के-फुल्के अंदाज़ के लिए जाने जाते रहे हैं। बनारस टॉकीज़ और दिल्ली दरबार ने उन्हें युवा पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय बनाया। चौरासी जैसी गंभीर और त्रासदीपूर्ण कृति ने साबित किया कि वे सिर्फ़ हास्य-लेखक नहीं, बल्कि गहरी और संवेदनशील कहानियाँ कहने का साहस भी रखते हैं।
इसी क्रम में आई मौत बुलाती है उनकी शैली में एक और बड़ा प्रयोग है। यह किताब हिन्दी में क्राइम-थ्रिलर और सस्पेंस-नॉवेल की परंपरा को आगे बढ़ाती है। यहाँ वे पाठक को हंसाने या भावुक करने के बजाय डराने और उलझाने की कोशिश करते हैं। किताब हमें बताती है कि सत्य व्यास केवल हँसी-मज़ाक या सामाजिक व्यंग्य तक सीमित नहीं, बल्कि अपराध और रहस्य की स्याह गलियों में भी ले जा सकते हैं।
• “मौत बुलाती है” — शीर्षक सीधा, रहस्यमय और असहज करने वाला है।
• यह हमें बताता है कि मृत्यु यहाँ सिर्फ़ एक घटना नहीं, बल्कि एक सक्रिय पात्र है, जो लगातार हमें खींचती है।
• “बुलाती” शब्द मौत को निष्क्रिय नहीं, बल्कि सक्रिय और चालाक शक्ति बनाता है।
• यह शीर्षक अपराध और रहस्य की दुनिया में उस मनोवैज्ञानिक खिंचाव को पकड़ता है, जहाँ मौत का सामना करने से कोई बच नहीं सकता।
• स्थान: कहानी मुख्य रूप से लखनऊ और उसके आस-पास घटती है। हुसेनगंज और मंडावली जैसे इलाके इसके केंद्र में आते हैं।
• टोन: गहरा, रहस्यमय, पुलिस-थ्रिलर शैली का।
• दृष्टि: अपराध और उसकी जाँच के बहाने मानवीय कमज़ोरियों और मनोवैज्ञानिक गुत्थियों को खोलना।

कहानी की शुरुआत दो अलग-अलग घटनाओं से होती है—
1. हुसेनगंज पुलिस को क्रिस्तानी कब्रिस्तान के बाहर एक शव मिलता है।
2. रेलवे पुलिस मंडावली रेलवे ट्रैक पर एक दूसरी लाश पाती है।
पहली नज़र में दोनों घटनाएँ अलग लगती हैं, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, पाठक पाता है कि दोनों आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं।
सबसे बड़ा रहस्य तब खुलता है जब शव का पोस्टमार्टम सामने आता है—एक शव के साथ तीन हाथ! (goodreads.com)
इंस्पेक्टर नकुल इस रहस्य की परतें खोलने निकलता है। लेकिन हर नई परत एक नए शक, नए पात्र और नई उलझन को सामने लाती है।
पूरी कहानी पाठक को बार-बार यह सोचने पर मजबूर करती है कि “मक़तूल कौन, क़ातिल कौन?”
• इंस्पेक्टर नकुल — नायक। निडर, पैनी नज़र वाला, लेकिन मानवीय भी। वह केवल केस सुलझाने वाला पुलिस अफ़सर नहीं, बल्कि इंसान की मनोवृत्ति को समझने वाला भी है।
• मक़तूल (शव) — यहाँ मृतक भी एक “पात्र” है। उसकी पहचान, उसका अतीत, और उसके साथ जुड़े लोग ही कहानी को गढ़ते हैं।
• क़ातिल (सस्पेक्ट) — उपन्यास में कई संदिग्ध पात्र हैं। कोई प्रेमी, कोई साथी, कोई परिचित। हर कोई शक के घेरे में आता है।
• हुसेनगंज और रेलवे पुलिस — पुलिस विभाग की दो शाखाएँ, जिनका टकराव और सहयोग कहानी को और जटिल बनाता है।
• शहर/लोकेशन — लखनऊ और उसके इलाके भी कहानी का हिस्सा हैं। गलियाँ, स्टेशन, कब्रिस्तान—सब माहौल गढ़ते हैं।
• भाषा: सत्य व्यास की सहज हिन्दी यहाँ भी है, लेकिन वह हास्य की बजाय कड़क और तीखी है। पुलिस-थ्रिलर को ध्यान में रखकर उन्होंने संवादों को चुस्त बनाया है।
• शिल्प: जाँच की परत-दर-परत आगे बढ़ती है। हर मोड़ पर नया क्लू, नया संदिग्ध।
• विशेषता: किताब तेज़-तर्रार है। इसे पढ़ते हुए लगता है जैसे आप वेब-सीरीज़ देख रहे हों।

1. अपराध और मनोविज्ञान
अपराध केवल बाहरी घटना नहीं है, बल्कि मानवीय कमज़ोरियों का परिणाम है।
2. सत्य और भ्रम
जाँच के दौरान हर चीज़ संदिग्ध लगती है। सत्य की परतें भ्रम में छुपी रहती हैं।
3. मृत्यु-बोध
मौत यहाँ सिर्फ़ अंत नहीं, बल्कि एक बुलावा है—एक अटल सत्य।
4. पुलिस और न्याय-व्यवस्था
किताब दिखाती है कि पुलिस किस तरह अपराध की गुत्थियाँ सुलझाती है, और उस प्रक्रिया में खुद भी उलझ जाती है।
• मौत बुलाती है ने हिन्दी पॉपुलर फिक्शन में क्राइम-थ्रिलर शैली को मजबूत किया।
• युवा पाठकों ने इसे हाथोंहाथ लिया क्योंकि इसमें सस्पेंस, रहस्य और अपराध की रोचकता थी।
• आलोचकों ने इसे हिन्दी का ऐसा थ्रिलर माना जो पाश्चात्य क्राइम-फिक्शन से टक्कर ले सकता है।
Reviewer’s Take
मौत बुलाती है को पढ़ना एक ऐसे सफ़र पर निकलने जैसा है जहाँ हर मोड़ पर कोई नया रहस्य छुपा है। शुरुआत में कहानी बस एक पुलिस-केस लगती है। एक शव मिला है, पुलिस पहुँची है, केस दर्ज हुआ है। लेकिन जैसे ही “तीन हाथों वाला शव” सामने आता है, आप समझ जाते हैं कि यह कहानी साधारण नहीं है।
इंस्पेक्टर नकुल का चरित्र किताब का सबसे मज़बूत पक्ष है। वह कोई सुपरहीरो पुलिस अफ़सर नहीं है, बल्कि आम इंसान है जो मेहनत, तर्क और पैनी नज़र से केस सुलझाने की कोशिश करता है। उसकी मानवीयता और संवेदनशीलता उसे पाठक के दिल के करीब ले आती है।
किताब का असली जादू है उसका सस्पेंस। हर पन्ने पर लगता है कि अब सच सामने आ जाएगा, लेकिन तुरंत कोई नया मोड़ आ जाता है। यही खेल पाठक को आख़िरी पन्ने तक बाँधे रखता है।
भाषा सीधी और चुस्त है। सत्य व्यास ने यहाँ अपनी हास्य-प्रधान शैली को पीछे रखकर गम्भीर और चुस्त लहजा अपनाया है। संवाद छोटे-छोटे और असरदार हैं। कई जगह गली-मोहल्लों की ज़ुबान भी आती है, जो किताब को ज़मीन से जोड़े रखती है।
आलोचनात्मक दृष्टि से देखें तो किताब का अंत कुछ पाठकों को अपेक्षाकृत हल्का लग सकता है। क्योंकि पूरे उपन्यास में जिस तरह तनाव और सस्पेंस बनाया गया है, वैसा ही विस्फोटक अंत अपेक्षित था। फिर भी, यात्रा इतनी दिलचस्प है कि यह छोटी-सी कमी बहुत मायने नहीं रखती।
किताब का सबसे बड़ा योगदान यह है कि इसने हिन्दी पाठकों को दिखाया कि हमारी भाषा में भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के थ्रिलर लिखे जा सकते हैं। यह उपन्यास नेटफ्लिक्स या अमेज़न प्राइम की किसी क्राइम-वेबसीरीज़ जैसा लगता है।
निष्कर्ष
मौत बुलाती है सत्य व्यास की सबसे साहसिक और प्रयोगधर्मी कृतियों में है। इसमें अपराध, रहस्य और मृत्यु-बोध का ऐसा संगम है जो हिन्दी थ्रिलर परंपरा को नई ऊँचाई पर ले जाता है।
एक पंक्ति में: मौत बुलाती है एक चौंकाने वाला और दिमाग़ को झकझोर देने वाला क्राइम-थ्रिलर है, जहाँ मौत केवल अंत नहीं बल्कि हर मोड़ पर “बुलावा” है।