
शहरी स्त्री–पुरुष रिश्तों की दिक़्क़तें; आत्मविश्लेषी और तीखा यथार्थ
“सप्तक” परंपरा (आरंभ तरंग सप्तक और फिर दूसरा सप्तक) हिन्दी साहित्य की एक महत्वपूर्ण धारा रही, जिसमें नए लेखक समूहों ने अपने समय की सामाजिक–सांस्कृतिक चुनौतियों को व्यक्त किया।
1970 के दशक तक आते–आते हिन्दी कथा–साहित्य पर तीन बड़े नामों का गहरा प्रभाव था—मोहन् राकेश, कमलेश्वर, और राजेन्द्र यादव। इनकी रचनाएँ मिलकर एक नए शहरी यथार्थ का निर्माण करती हैं, जिसमें स्त्री–पुरुष संबंध, विवाह, प्रेम, अकेलापन और आत्मसंघर्ष को नए ढंग से देखा गया।
“दूसरा सप्तक”—यह केवल कविताओं या कहानियों का समूह नहीं, बल्कि एक पीढ़ी का घोषणापत्र है। यह बताता है कि साहित्य की आवाज़ अब सिर्फ़ ग्रामीण या परंपरागत नहीं, बल्कि शहरी, बौद्धिक और आत्ममंथनशील भी है।
• स्थान: महानगर, विश्वविद्यालय, दफ़्तर, मध्यमवर्गीय घर और किराए के मकान।
• टोन: आत्मविश्लेषी, अस्तित्ववादी, यथार्थवादी।
• दृष्टि: रिश्तों की जटिलता, स्त्री–पुरुष समानता और असमानता की परख।
(1) मोहन् राकेश
• प्रमुख उपन्यास: अँधेरे बंद कमरे (1961), नई सड़कें आदि।
• विशेषता: विवाह और संबंधों की खालीपन की त्रासदी।
• नारी–पुरुष रिश्तों में संवादहीनता और आकांक्षाओं की टकराहट।
(2) कमलेश्वर
• प्रमुख उपन्यास: कितने पाकिस्तान (1973), एक और चन्द्रकान्ता आदि।
• विशेषता: साम्प्रदायिकता और राजनीति के साथ–साथ शहरी रिश्तों का तीखा चित्रण।
• कहानी में अक्सर आधुनिक मनुष्य का अकेलापन और स्त्री की स्वतंत्र आवाज़ गूँजती है।
(3) राजेन्द्र यादव
• प्रमुख उपन्यास: सारा आकाश (1960s), उखड़े हुए लोग, शह और मात आदि।
• विशेषता: मध्यवर्गीय जीवन का वैवाहिक यथार्थ, पति–पत्नी की असमानता, और स्त्री की कसमसाहट।
• सारा आकाश में नवविवाहित दंपति के मनोभावों का बारीक चित्रण।

1. शहरी जीवन का तनाव
बड़े शहर में परिवार, करियर और रिश्तों के बीच टूटन।
2. स्त्री–पुरुष रिश्ते
समानता और स्वतंत्रता की चाह, पर पारंपरिक ढाँचों से टकराहट।
3. मनोवैज्ञानिक गहराई
संवादहीनता, अकेलापन और अधूरापन।
4. राजनीतिक और सामाजिक टिप्पणी
कमलेश्वर विशेष रूप से समाज–राजनीति के प्रश्नों को कहानी में शामिल करते हैं।
• भाषा आधुनिक, सीधी और आत्ममंथन से भरी हुई।
• संवादों का महत्व, क्योंकि ये रचनाएँ रिश्तों की बातचीत और चुप्पियों पर टिकी हैं।
• शिल्प में प्रयोगधर्मिता: stream of consciousness, आत्मसंवाद, और बहुस्तरीय कथन।
• इस दौर की रचनाओं ने हिन्दी साहित्य को “नयी कहानी” आंदोलन से आगे बढ़ाया।
• स्त्री–पुरुष रिश्तों की जटिलताओं को नए ढंग से सामने लाया।
• मध्यमवर्गीय पाठकों ने इन रचनाओं में अपना जीवन देखा—इसीलिए ये बेहद लोकप्रिय हुईं।
• आलोचना में इन लेखकों को हिन्दी के आधुनिकतावादी यथार्थवाद के अगुवा कहा गया।
• मोहन् राकेश: हिन्दी के पहले “अस्तित्ववादी” लेखक माने जाते हैं; आषाढ़ का एक दिन (नाटक) भी प्रसिद्ध।
• कमलेश्वर: बाद में टीवी और सिनेमा से भी जुड़े; उनकी लेखनी राजनीति और इतिहास पर गहरी चोट करती है।
• राजेन्द्र यादव: हंस पत्रिका के संपादन से हिन्दी स्त्री–लेखन और बहसों को राष्ट्रीय स्तर पर मंच दिया।
Reviewer’s Take
“दूसरा सप्तक” और 70 के दशक की इन रचनाओं को पढ़ते समय लगता है कि हिन्दी साहित्य ने गृहस्थी की खामोश दीवारें तोड़ दीं।
यहाँ न तो प्रेम रोमानी है और न ही विवाह सुरक्षित—बल्कि सब रिश्ते संवादहीनता और असंतोष से भरे हैं।
एक पंक्ति में: इन रचनाओं ने हिन्दी साहित्य में शहरी मध्यमवर्गीय स्त्री–पुरुष रिश्तों की सबसे प्रामाणिक और तीखी तस्वीर दी।