
Papa Man निखिल सचान की चौथी किताब मानी जाती है। इस पुस्तक की ख़ास पहचान यह है कि इसे रिलीज़ होने से पहले ही इसके फिल्म रूपांतरण की योजना बनी थी। यह कहानी मुख्यतः पापा / पिता की भूमिका, त्याग और आत्म-खोज के इर्द-गिर्द घूमती है। (Goodreads)
कहानी की नायिका छुटकी है, और उसका “Papa Man” चंद्रप्रकाश गुप्ता है। चंद्रप्रकाश एक पिता है जो मुंबई में सपने देखने वाला इंसान है। वह पिता अपनी ज़िम्मेदारियों, अपेक्षाओं और व्यक्तिगत संघर्षों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है।
इस उपन्यास में पारिवारिक रिश्ते, त्याग, महत्वाकांक्षा और पिता-बच्चे के बीच संबंधों की जटिलताएँ उतारी गई हैं। पहलू ये कि पिता केवल परिवार का कमाने वाला सदस्य नहीं है, बल्कि उसके भी सपने, असुरक्षाएँ और उम्मीदें होती हैं।
• चंद्रप्रकाश गुप्ता (Papa Man) — केंद्रीय पात्र। पिता, सपने देखने वाला व्यक्ति, जो अपने अंदर छुपी लड़ाइयों और जिम्मेदारियों को संभालने की कोशिश कर रहा है।
• छुटकी — नायिका, जो पिता की छवि और उसकी वास्तविकता दोनों को पहचानने की कोशिश करती है।
• पारिवारिक सदस्य / सहायक पात्र — वे जो पापा और छुटकी की ज़िंदगी में समीप या दूर खड़े होते हैं, और प्रभावित करते हैं।
• शहर / परिवेश — मुंबई जैसे बड़े शहर का परिवेश भी कहानी का महत्वपूर्ण पात्र है क्योंकि वह पात्रों की चुनौतियाँ बढ़ाता है।

• Papa Man की भाषा सहज, सरल और संवादप्रधान है। (Goodreads)
• लेखक ने पात्रों की आंतरिक भावनाओं को सीधे और सपाट संवादों के माध्यम से उकेरा है, बिना अधिक अलंकरण के।
• कहानी की गति संतुलित है—कुछ हिस्से भावनात्मक और धीमे होते हैं, तो कुछ हिस्से तीव्र बदलावों से गुजरते हैं।
• शैली में हल्का-सा नॉस्टैल्जिया, पारिवारिक संघर्ष और सपनों की खोज के तत्व मिश्रित हैं।
मजबूती
• Papa Man की सबसे बड़ी ताकत है उसकी भावनात्मक गहराई—पिता और बेटी के बीच की संवेदनाएँ पाठक के हृदय तक पहुँचती हैं।
• सपनों और ज़िम्मेदारियों का टकराव, और उनमें झूलता जीवन—ये विषय विस्तार और संवेदनशीलता से लिखे गए हैं।
• दर्शनीय पात्र: पापा जैसा पात्र कम ही भाष्यों में इतनी मानवीय बनावट में मिलता है—वह कमजोर, संघर्षशील और उम्मीदों वाला है।
चुनौतियाँ / सीमाएँ
• कुछ पाठक कह सकते हैं कि कहानी कभी-कभी अपेक्षित मोड़ ले लेती है—कुछ घटनाएँ पहले-से अनुमानित हो सकती हैं।
• पात्रों की अधिक पृष्ठभूमि न देना—कई संदर्भ अस्पष्ट रह जाते हैं, जैसे कि पापा के सपनों की शुरुआत, जीवन की पिछली चुनौतियाँ।
• निजी संघर्षों का संतुलन—जब पिता के संघर्ष बड़े हो जाते हैं, तो उन्हें सब पात्रों के बीच सहज सामंजस्य देना कठिन हो जाता है।
Papa Man निखिल सचान की वह कृति है जो पारिवारिक संबंध, त्याग और पिता-छोटी की दुनिया को सरल लेकिन प्रभावशाली ढंग से पेश करती है। यह उपन्यास यह याद दिलाता है कि हर पिता “सपना देखने वाला व्यक्ति” भी होता है—not सिर्फ़ एक संरक्षक। इसके पात्र, संवाद और विचार पाठक को गहरे भीतर झकझोरते हैं।
एक पंक्ति में: Papa Man वह कहानी है जिसमें पिता की उम्मीदें और ज़िम्मेदारियाँ साथ-साथ जिया जाती हैं—जब सपने और रियलिटी आपस में टकराएँ।