ले कर तस्वीर उसकी बरबक्स खुश हो उठती हूँ
पर उसका ना बोलना, ढलती शाम के माइने सा है
है मिलन की चाहत, पर कहीं दूर बही जा रही हूँ
यूं समझ लो कि गंगा का गंगोत्री को चाहने सा है
साथ गुजरे लम्हों की कशिश से कांपती है रुह
पर उसका अहसास सर्द हवाओं में तापने सा है
यादों को इजाजत नहीं है बह जाने की आँखों से
पर हर पल, गीली कपास से रेशा कातने सा है
मेरी गजलें, मेरे गीत, मेरी नज्म, मेरा हर शब्द
उसकी यादों के काजल को नैनों में टांकने सा है
कभी उजला, कभी धूंधला, तो कभी चूभता सा
हां, वो मेरे वजूद मैं किसी चमकते आईने सा है