आज कुछ अनसुनी दास्तान लिख रहा हूँ
खो गई थी जो कहिं वो पहचान लिख रहा हूँ ।
दिल से जो कभी लबों पर आई न हो
बाते खुद की कुछ अन्जान लिख रहा हूँ ।
आँखों में नमी और होंठो पे मुस्कराहट हो
उदास बन्दों के ये निशान लिख रहा हूँ ।
वक़्त की नज़ाकत है या खुद पसन्दी मेरी
आज उसको मैं अपनी जान लिख रहा हूँ ।
आँखों में समेटे है जो पल अपनी ज़िन्दगी के
किस्से में अपने उनको भी बेजान लिख रहा हूँ ।
जरूरतों ने वक़्त से पहले कर दिया बूढ़ा "रिशु"
अपनी ग़ज़ल में खुद को जवान लिख रहा हूँ ।