आज कुछ अनसुनी दास्तान लिख रहा हूँ

आज कुछ अनसुनी दास्तान लिख रहा हूँ
खो गई थी जो कहिं वो पहचान लिख रहा हूँ ।

दिल से जो कभी लबों पर आई न हो
बाते खुद की कुछ अन्जान लिख रहा हूँ ।

आँखों में नमी और होंठो पे मुस्कराहट हो
उदास बन्दों के ये निशान लिख रहा हूँ ।

वक़्त की नज़ाकत है या खुद पसन्दी मेरी
आज उसको मैं अपनी जान लिख रहा हूँ ।

आँखों में समेटे है जो पल अपनी ज़िन्दगी के
किस्से में अपने उनको भी बेजान लिख रहा हूँ ।

जरूरतों ने वक़्त से पहले कर दिया बूढ़ा "रिशु"
अपनी ग़ज़ल में खुद को जवान लिख रहा हूँ ।


तारीख: 16.06.2017                                    ऋषभ शर्मा रिशु









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