रिश्तों की दीवार क्यूँ रेत सी बनाई जाए,
बुझी तीली से ना आग कोई लगाई जाए।
खारा समन्दर है ये वक्त, ये जग, ये जहां,
नदिया कोई मीठी सी इसमें मिलाई जाए।
दिन भी अच्छे होंगे रातें भी अच्छी होंगी,
साथ बैठने को पहले चादर फैलाईं जाए।
यूँ तो मैं भी ख़ुद में काफ़ी हूँ पर क्यूँ ना,
सबसे पहले ये परत ख़ुद से हटाई जाए।
छोड़कर वकालत खामियों की "अक्सर"
पंचायत कोई अपने अन्दर बैठाईं जाए।
🙏🏻🌹जय श्री राधे 🌹🙏🏻