रिश्तों की गर्माहट को न खो, अनजानी भूल पर
न तुम कहीं पहूंचोगो, खो देंगे हम भी मुकाम को
माना रोज होती होगी मेरी खताओं से मुलाकात
बे-ख़ता हो जाना तो इल्जाम है खुद इल्जाम को
याद करना-इल्जाम मेरा, चाहने की खता कबूल
पर कुछ कसूर तो रख दो, इस बहकती शाम को
रख तूं पर्दा भले, बद्दुआओं में तो न रख हमनवां
यूँ सरे राह रुसवा ना कर, मेरी चाहत के नाम को
आप जैसे नशेमन को नशा न दे पायेगा म़यकदा
नजरें फेर लेने की तौहीन, नहीं बख़श्ते जाम को
और देर तलक न रह पायेगा चिरागे़-सहरी रोशन
लौट भी आ कि शमा अब पहुंचती है अंजाम को