बात खुद से


बात खुद से फिर गुनगुनाई मैंने
फिर भरी आंख फिर लौटाई मैंने 

छू गई जो बहाना कर बारिश
एक नज़्म ओर तुमपे बनाई मैंने 

थी जो तुझमे एक मुझसी अदा 
देख आईने में वो मुस्कुराई मैंने 

वो तेरा ख़त वो ख़ाली चेहरा 
हज़ार शक्ल ख़्वाबी सजाई मैंने 

आखिरी रंग ना उतरा तू फ़िज़ूल  
आरज़ू रोज़ भले एक बनाई मैंने 
         


तारीख: 14.06.2017                                    रवि कान्त मोंगा 




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है