बनकर कोई अनदेखी परछाई

बनकर कोई अनदेखी परछाई, तू हमेशा मेरे साथ चलती है। 
मैं चलता हूँ सुनसान रास्तों पर, तू देकर हाँथों में हाँथ चलती है।

जब भी लिखना चाहा हैं मैंने कुछ भी अपने बारे में,
न जाने क्यों मेरे जेहन में बस तेरी ही बात चलती है।

बरसती है आँखों से आसूं बनकर कभी तनहाई में,
तो कभी मेरी ग़ज़लों में तू बनकर जज़्बात चलती है।

खिलती है हर सुबह धूप बनकर मेरे मन के आँगन में,
गुज़रता हूँ अंधेरों में तो, तू चांदनी सी हर रात चलती है।

हँसती है कभी बिन बात के तो तेरे साथ हँसता हूँ मैं,
कभी उदास शक्ल तेरी, मेरे जेहन में दिन रात चलती है।


तारीख: 17.06.2017                                    अर्पित गुप्ता 









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