मैं अपने कामों में ईमान रखता हूँ 

मैं अपने कामों में ईमान रखता हूँ 
सो सबसे अलग पहचान रखता हूँ

सब इंसान लगते हैं मुझे एक जैसे 
तासीर में हमेशा भगवान् रखता हूँ  

है महफूज़ जहाँ मुझ जैसे बन्दों से
सच से लैश अपनी जुबां रखता हूँ 

बना रहे हिन्दोस्तान मेरा शहंशाह 
अपने तिरंगे में ही प्राण रखता  हूँ  

मुझे तालीम है मिट्टी की खुशबू की
अपने जहन में  संविधान रखता हूँ 


तारीख: 27.07.2019                                    सलिल सरोज




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है