छोटी–बड़ी दीवार गिरा दें हम

छोटी–बड़ी दीवार  गिरा दें हम |
आओ, दिलों के फासले मिटा दें हम ||

अभी भी पसरा है तमस बस्तियों में,
अपने हिस्से का एक दीप जला दें हम ||

क्या मिला हमें अब तक दूरियाँ रखकर,
गले लगकर शिकायतें भुला दें हम ||

पथरा गई आँखें सपने जो मर गए,
फिर उन्हें  जीने का  हौसला दें हम ||

पंख फैलाये हैं अभी–अभी जिसने,
परिंदों को  नया  आसमां  दें  हम ||

ज़ख्म देने में माहिर हैं लोग ‘माही’,
मोहब्बत का हुनर और सीखा दें हम ||


तारीख: 19.06.2017                                    महेश कुमार कुलदीप









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है