दिल इतना क्यों बेचैन है

मतला:

 

दिल इतना बेचैन क्यों है, क्या फिर नई बंदिश चाहता है,

पिछले ज़ख़्म अभी हरे हैं, ये फिर कैसी साज़िश चाहता है।

 

शेर 2:

 

अभी तो आँसुओं का सैलाब भी थमा नहीं है आँखों में,

फिर भी ये दिल नादान मेरा, नई कोई ख़्वाहिश चाहता है।

 

शेर 3:

 

तन्हाई के सहरा में भटकती हैं उदास साँसें मेरी,

दिल फिर से किसी नग़्मे की ताज़ा पेशकश चाहता है।

 

शेर 4:

 

समझाया बहुत इस दिल को, ज़ख़्मों को न कुरेदो अब,

पर ये नादान सुनता नहीं, फिर वही आज़माइश चाहता है।

 

शेर 5:

 

शायद यही फ़ितरत है इसकी, दर्द में भी मुस्कुराता है,

गिरकर संभलने का शौक़, ये कैसी फरमाइश चाहता है।

 

मक़्ता:

 

ज़िंदगी की किताब में कुछ पन्ने अभी भी खाली हैं 'मुसाफ़िर'

दिल उन पर क्या  फ़िर से कोई , नई दास्तां  लिखना चाहता है।


तारीख: 28.11.2024                                    मुसाफ़िर




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