ख्वाब आँखों में

ख्वाब आँखों में जितने पाले थे, 
टूट कर के बिखर ने वाले थे।

जिनको हमने था पाक दिल समझा,
उन्हीं लोगों के कर्म काले थे।

पेड़ होंगे जवां तो देंगे फल,
सोच कर के यही तो पाले थे।

सबने भर पेट खा लिया खाना,
माँ की थाली में कुछ निवाले थे।

आज सब चिट्ठियां जला दी वो,
जिनमें यादें तेरी सँभाले थे।

हाल दिल का सुना नही पाये,
मुँह पे मजबूरियों के ताले थे।


तारीख: 20.10.2017                                    अभिषेक कुमार अम्बर




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