तेरे ख़ामोश होठों पर

sahitya manjari ek nazm

तेरे ख़ामोश होठों पर
मेरा ही नाम होता था
ये तब की बात है जबकि
कोई तुझको सताता था।

बहुत  परवाह करते थे हम
इक़ दूजै की पर लेकिन
मुसीबत के दिनों में 
यार  तेरा ख्याल आता है।

तेरे खामोश होठों पर......

जो संग-संग में बिताये थे
वो लम्हें याद आते हैं।।  
  गली में ओर मोहल्ले में
सभी दुश्मन हुए मेरे
वो भूले ज़ख़्म याद आकर
मुझे एहसासे-गम देता

तेरे खामोश...........

जरा कुछ याद तो कीजे
मोहब्बत से भरे वो दिन
ज़माने के सितम ऐसे 
हुए अपनी मोहब्बत पर
भुला बैठें हैं हम अपनी
वो कश्मे ओर वादों को
इधर में मर रहा हूँ याद में
लेकिन उधर जग मुस्कुराता है

तेरे खामोश........

तेरे ख़ामोश......


तारीख: 04.01.2024                                    आकिब जावेद









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