नई पीढ़ी से उम्मीदें तो है पर खास नही
जेहन से जो गाँधी,नेहरु या सुभाष नही ।
खुदगर्ज़ ख्याल,बेतरतीब बिखरे हुए बाल
तन पे तहजीब को सँवारते लिबास नही ।
बे लगाम तक़नीक़, और बदहबास तरक्की
बेशुमार ख्वहिशों कि है बूझती प्यास नही ।
न बुजुर्गो की इज्जत है ,न रिश्तों हिफाजत
पुरानी चीजें अब आती इनको रास नही।
क्या कहें अजय अब इस दौरे बदनसीब को
अपनी तबाही का जिसे ज़रा एहसास नही ।