तेरी मोहब्बतो का ये असर

हर  सम्त तुम्हीं  तुम  हो  जिधर  देख रहा हूँ,
तेरी  मोहब्बतो  का ही  ये असर देख रहा हूँ.

छिडी  है  जंग   अब   अपने  ही   बेटो  में,
बूढी  माँ  के  आँखों  में  डर  देख  रहा  हूँ.

बैठते  थे  पंछी  जिसपर  कभी  शामों  सहर,
वक्त है कि  अब  वही सूना शजर देख रहा हूँ.

ठोकरें खाकर  आँसूओं को  पीकर सो जाता है,
उस गरीब  बच्चे को  जिधर  किधर देख रहा हूँ.

अपने  महबूब  के  आने  की  खबर  भर सुनकर,
उसके चेहरे पर ईद के चाँद सा निखर देख रहा हूँ.

गुलों  की  तरह मुस्कुराये  खूश्बू  ही बिखेरती रहे,
खुद के  लिए ऐसा  ही रहगुजर  देख  देख रहा हूँ.

पहचान  लेते हैं जो चेहरे में  छुपे असल चेहरे को, 
नजरों में  उसकी  मैं ऐसी  ही  नजर  देख  रहा हूँ.

थाम ले मेरा  हाथ  उस वक्त  कभी  जो  फिसल जाऊं, 
जिंदगी के सफर में ' देव' ऐसा ही हमसफर देख रहा हूँ.


तारीख: 15.06.2017                                    देवांशु मौर्या




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