गिले शिकवे जितने भी थे ठिकाने लग गये
एक मुस्कान तक आते आते ज़माने लग गये
एक अरसे बाद ख़ुश्क हुई थी ये आँखें
बादल आके फलक पे इन्हें भिगाने लग गये
वक़्त ने सिखा ही दिया हुनर जीने का यहाँ
भीतर चाहे सैलाब हो बाहर मुस्कुराने लग गये
महलों में बैठे है तूफ़ानो के सौदागर और
इल्ज़ाम अंधेरे के चरागों पे आने लग गये