वो शख़्स माँ पर हाथ उठा आया

सुकूत बिखरा चीखती वक़ा छोड़कर 
खामोशियाँ रह गई हर सदा छोड़कर। 

मेरे ज़ख्मों की फिक्र करने वाले 
तेरे मरहम गए हैं वबा छोड़कर। 

तू कैसा हकीम था अजीबोगरीब 
मर्ज ठीक हो गया तेरी दवा छोड़कर। 

धोखा खाकर टूट गए दगा बाज़ लोग 
खुश होते थे जो वफ़ा छोड़कर। 

ख़ुदा तेरी बदी को मुआफ़ कर लेगा 
इक मर्तबा देख ले तू जफ़ा छोड़कर। 

चुका दूँ तेरे अहसान सारे मरकर
तू चला जाता है मुझे जिंदा छोड़कर। 

वो शख़्स माँ पर हाथ उठा आया 
और माँ मर गई ढ़ेर सारी दुआ छोड़कर। 


तारीख: 15.06.2017                                    विनोद कुमार दवे






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