अधूरी सी चाहत

दिल में अधूरी सी चाहत लेकर
हो गये खाक वो अदावत लेकर

सजदे कजा हैं कहाँ जाऊँ अब
टुकड़ो मे बिखरी इबादत लेकर

आजाद हैं सब रियासत मे आज
करोगे क्या अब नबावत लेकर

अपनी गलती पर शर्मिंदगी है उसे
फिर से आया है वो नदामत लेकर

अब प्यार वफा से रहने दे सबको
घर से निकल जा बगावत लेकर

हसद ओ फसाद सिफ्त है तुम्हारी
मर जाओ कहीं ये आदत लेकर

 


तारीख: 02.03.2024                                    मारूफ आलम









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