दिल के मचल रहे मेरे

दिल के मचल रहे मेरे  अरमान क्या करें
हम ख़ुद से हो गए  हैं  परेशान क्या करें

कश्ती हमारी टूटी  है  दरिया है बाढ़ पर
मझधार में ही आ गया तूफ़ान क्या करें

दामन में लग न जाए कहीं डर है दाग का
पीछे पड़ा हुआ  है  ये  शैतान क्या करें

ज़ालिम को इतनी छूट भी अच्छी नहीं ख़ुदा
शहरों को होते देखा  है वीरान क्या करें

झूठी है ज़िंदगी  यहाँ  मरना सभी को है
सब जान कर भी बन गए अनजान क्या करें

दौलत कमा के हमने महल भी बनाये हैं
जाना है खाली हाथ ये सामान क्या करें

कल क्या "निज़ाम" होगा किसीको ख़बर नहीं
फिर भी है भूला मौत को इंसान क्या करें


तारीख: 04.02.2024                                    निज़ाम- फतेहपुरी









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