हल्की फुल्की पतली सी

हल्की फुल्की पतली सी एक दरार से
ताकता रहता हूँ दुनियाँ को इस पार से

दरिया बहाकर ले जाता है अपने साथ
कट कर गिरती है जो मिट्टी किनार से

पलभर मे ये इतनी भीड़ कहाँ से आई
किसी ने तो किया था ऐलान मिनार से

वो दिन गुजर गए हैं नगद की बात कर
दिल भर चुका है कब का तेरे उधार से

डालर की बात करने वालों जरा बताओ
रूपया सस्ता क्यों है अब भी दिनार से


तारीख: 15.03.2024                                    मारूफ आलम









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