इज्जतों का सफर

जिल्लतों से राब्ता करके इज्जतों का सफर करना
क्या इसे ही कहते हैं मेरे दोस्त जिंदगी बसर करना

ये क्या कम है बस्तियाँ फूंक दीं घर बार जला दिए
इससे ज्यादा बुरा और क्या किसी का हश्र करना

हद से न गुजर जाना ओ जुल्मों सितम के शंहशाह

अगर कर सके तो हम पर थोड़ी सी कसर करना

इज्जत.शौहरत,जिंदगी को भी मटियामेट कर देगा
तेरी आह का निकलकर सीधे दिल पे असर करना

डर लगता है कहीं कयामत के दरवाजे ना खोल दे
तेरा ये रोना और रो रो कर फलक पे नजर करना


तारीख: 02.03.2024                                    मारूफ आलम









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