ज़िन्दगी में किसी पे मेहरबां हम थे

Gazal Shayari Sahitya MAnjari

ज़िन्दगी में किसी पे मेहरबां हम थे
जहाँ में अब कहाँ हैं कल कहाँ हम थे।

अभी हालात  से मज़बूर हैं  लेकिन
तुम्हारी  जिंदगी  की  दास्ताँ  हम थे।

तुम्हारी बदज़ुबानी चुभ रही लेकिन
ज़िन्दगी में सलीके की जुबां  हम थे।

ये  तख़्तों  ताज  हुकूमत  कब तलक
वो   सब   भी  वहाँ  है  जहाँ हम  थे।

नफ़रतों की भीड़ में कहीँ गुम हो गया
वो  बढ़ते भाईचारे   का  गुमाँ  हम थे।

कभी एक मरता है वो दूजा मारता है
रोको उनको सब आग है धुआँ हम थे


तारीख: 04.01.2024                                    आकिब जावेद









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