जमाना बदलता रहा

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अब  जमाना  बदलता रहा।
लड़खड़ा कर सम्हलता रहा।।

आदमी  को  जहाँ  देखते,
आज तक वह बिखरता रहा।

लोग  सीढ़ी  चढ़ेंगे  यहाँ,
और  मैं  हूं  उतरता  रहा।

ऐब  हम  ढाँकते  हैं अजी,
दोष  उतना  उघरता  रहा।

छौंक  देना  जरूरी  नहीं,
जबकि काजू बघरता रहा।


तारीख: 10.02.2024                                    अविनाश ब्यौहार









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