दस्तूर ऐ सीरत

 

क्या गजब दस्तूर कि, खुद की गलती पर वकील
और दुसरे कि हो तो लोग बैठे हैं बने जज तैयार से

तूं सही और हमेशा दूसरे गलत, तो खुद में झाँक 
असल तेल का पता तो चलता है, तेल की धार से

बूढी मां करने लगती है बकबक, तेरे आते ही घर
कभी तोल कर तो देख तेरा वक्त उसके इंतजार से

सूना है कि कहा हुआ नहीं सूनती, आजकल बीवी
तो उसे तूनें बुलाया ही कहां है, दिल की पुकार से

तेरे आने की राह तकते मिलेंगे बच्चे बेसब्री से
ले कर जा तो सही इन्हें,साईकिल सिखाने प्यार से

ये अकङ इक दिन राख होकर गंगा में जा मिलेगी
सांसों के रहते सीख ले मुस्कुराना अपनी हार से

हैरतअंगेज सी है इस जमाने की सीरत ही "उत्तम"
नजरें आदमी की होती हैं खराब और घूंघट नार से


तारीख: 15.06.2017                                                        उत्तम दिनोदिया






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