फूल मुरझाये ही सही

जिदंगी में कुछ गिले तो है
फूल मुरझाये ही सही खिले तो है

कठिन राह है कुछ सोचकर घबरा गये
वो असफल ही सही चले तो है

जिदंगी बार-बार कब मौके देती है
हम एक बार ही सही मिले तो है

लाख वो हमसे दूर होते ही रहे
अभी भी उनकी यादों के सिलसिले तो है

रहने दो "राम" अब बेचैन ही रहो
कम स कम रूसबाई से फाँसले तो है


तारीख: 15.06.2017                                    रामकृष्ण शर्मा बेचैन









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