ज़ेहन को भी ज़रा जहमत दे इमां को मौका-ए -खिदमत दे। ज़िंदगी यूँ जहालत में न गुजरे या खुदा थोड़ी सी तो रहमत दे। घिस रही उम्र रोज़ यूहीं बेवजह इन गाफिलों को तू हिकमत दे।
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