ज़ेहन को भी ज़रा जहमत दे
इमां को मौका-ए -खिदमत दे।
ज़िंदगी यूँ जहालत में न गुजरे
या खुदा थोड़ी सी तो रहमत दे।
घिस रही उम्र रोज़ यूहीं बेवजह
इन गाफिलों को तू हिकमत दे।
तारीख: 07.02.2024अजय प्रसाद
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